हिन्दी की वर्तमान लोकप्रियता और गौरवपूर्ण परम्परा के संदर्भ में यह तथ्य निर्विवाद है कि समय के लम्बे अंतराल में उसके प्रचार-प्रसार के लिए अनेकानेक मनीषियों और विद्वावनों ने इतना कुछ किया है, विभिन्न स्तरों पर उसे देखा-भाला है कि सहसा विश्वास नहीं होता। ऐसी महान प्रतिभाओं के बीच डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक' जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है।
कविता की चाहे सवैया छंद शैली हो या गीत परम्परा आदि सभी में उन्होंने आधी सदी से अधिक समय तक नरिंतर इतना कुछ हमें दिया है कि उसका समग्र आकलन पूरी तरह से हो सका है, आज भी ऐसा दावा नहीं किया जा सकता। कविता ही नहीं, निबंध, संस्मरण, समीक्षा और सम्पादन आदि शैलियों को भी उन्होंने धन्य किया। जिस तरह से 'सुकवि विनोद' जैसी कविता पत्रिका वर्षों तक उनके सम्पादन में सभी नये-पुराने कवियों को स्थान देती रही थी, उन्हें पहचान बनाने के लिए मंच प्रदान करती थी, उसे देश निशंक जी के सम्पादक व्यक्तित्व के प्रति भी आदरभाव स्वाभाविक ही है।
इसी तरह, संस्मरणों की उनकी पुस्तक 'संस्मरणों के दीप' की भाषा-शैली इतनी आत्मीय है कि कोई भी पाठक उसे पढना शुरू करने के बाद शायद ही बीच में छोड़ सके। मध्यमवर्गीय जीवन जीते हुए कैसे उन्होंने सात दशकों तक हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं को निरंतर आगे बढ़ाया, कैसे स्तरीय शिक्षा का दीप जलाए रखा, यह देश आश्चर्य हुए बिना नहीं रहता। अब वह हमारे बीच नहीं हैं, तो उनका प्रेरक व्यक्तित्व एवं कृतित्व हम सबका पथप्रदर्शक है।
उनकी पुण्य स्मृति में डॉ. लक्ष्मीशंकर मिश्र 'निशंक' अध्ययन संस्थान, लखनऊ की स्थापना की गयी है, जिसका उद्देश्य है सद्साहित्य को प्रोत्साहित करना। इसी क्रम में संस्थान ने प्रतिवर्ष निशंक जी के जन्मदिवस (21 अक्टूबर) पर हिन्दी की श्रीवृद्धि के लिए समर्पित किसी एक महान प्रतिभा को भी सम्मानित किया जाता है। इस क्रम में अब तक हिन्दी कविता के अनन्य हस्ताक्षर श्री दीन मोहम्मद 'दीन' एवं श्री माहेश्वर तिवारी को संस्थान द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।
संस्थान द्वारा प्रतिवर्ष 'निशंक सुरभि' नामक वार्षिक पत्रिका का भी प्रकाशन किया जाता है। यह पत्रिका समकालीन साहित्य के दस्तावेज के रूप में एक अकिंचन प्रयास है। इसके अतिरिक्त भी संस्थान की अनेक योजनाएं एवं संकल्पनाएं है, जो समय-समय पर मूर्त रूप में आप सबके सामने आती रहेंगी।
-------------------------